स्मृति (बचपन की)
प्रतियोगिता हेतु रचना
स्मृति (बचपन की)
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कितना अच्छा समय था वो जब एक कमरे में रहते थे।
चार भाई और एक बहन प्यार से हिल मिल रहते थे।।
घर में बिजली नहीं थी पर सब दिया जलाकर पढ़ते थे।
झगड़ा कभी नहीं होता था काम सभी मिल करते थे।।
अम्मा के कामों में हाथ बंटाते उन्हें तंग ना करते थे।।
बप्पा जब खाना खाते उन पर पंखा भी झलते थे।
खाना खाकर आराम करें तो उनकी सेवा करते थे।।
गर्मी के दिनों में बिन बिस्तर ठंडी जमीन पर सोते थे।
सर्दी जब आ जाती थी एक रजाई में ही हम सोते थे।।
बप्पा जब दफ्तर से आते तो फल औ मिठाई लाते थे।
फिर हम सब मिल एक साथ आपस में बांट के खाते थे।।
अम्मा भी हम सब बच्चों को ताजा खाना खिलाती थी।
खाना खाने के बाद सभी को प्यार से ये समझाती थी।।
जीवन में सदा प्यार रखना झगड़ा कभी नहीं करना।
अगर मुसीबत किसी को हो तो साथ सदा देते रहना।।
कुल का नाम बढ़ा ना सको तो कुल पर दाग लगाना ना।
हम दोनों में कोई साथ बचे तो उसको बोझ समझना ना।।
जो मां ने सीख सिखाई थी उस पर हम सभी चल रहे हैं।
मां,बाप का आशीर्वाद मिला हम सभी सुखी रह रहे हैं।।
बचपन की सुनहरी यादें हम अब तक भूल नहीं पाए।
सोच कर अपने बचपन को जीवन भर हम इतराए।।
आज सभी सुविधाएं हैं पर असली आनन्द नहीं आता।
बचपन में जो प्यार मिला मुझको उसको भूल नहीं पाता।।
पैसा कम था थे ख्वाब भी कम रिश्तों में असली नाता था।
मेहमान अगर घर आ जाये उसका आना भी भाता था।।
अब सुविधाएं बहुत है पर अतिथि को बोझ समझते हैं।
अगर अतिथि रुकना चाहे परिवार के मूड उखड़ते हैं।।
बचपन के वो दिन अच्छे थे जब प्यार से साथ में रहते थे।
गर्मी की छुट्टियों में हम सब ननिहाल में जाकर रहते थे।।
ना ही कपड़ों की चिन्ता थी ना खूब किताबों का बस्ता।
घर से स्कूल दूर तो था दोस्तों संग पैदल कटता था रस्ता।।
पथिक भी अपने बचपन की यादें को नहीं भुला पाया।
सोंच सोंच कर मन ही मन दिल के अन्दर ही हर्षाया।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर
Gunjan Kamal
03-Jun-2024 01:46 PM
👏🏻👌🏻
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Abhinav ji
28-May-2024 12:25 AM
Very nice👍
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